चिड़ियाघर में दिखे के पिंजरो में मिले हैं परिंदे
चंद कबूतरों के सिवा शहर में कब बचे हैं परिंदे
कुल्हाड़ों की सदा पर कांपता है दरख्त का दिल
आई सर्दी बचा तो गिनेगा कितने लोटे हैं परिंदे
बदलते मोसम के मिजाज़ की समझ थी उनको
घोसले बनाने आये थे घर लोटने लगे हैं परिंदे
शिकारियों का जाल हैं, कही घात कही गोलीयाँ
बिखरे पर गवाह हैं बे तादाद मारे गए हैं परिंदे
ज़हरीली हवाओं ने उड़ानों के होसले किये पस्त
तेज़ाब बनी नदियों ने भी बे पर किये हैं परिंदे
हरियाले खेत जहाँ थे कंक्रीट का शहर बस गया
बे आशियाना बे आबओदाना भूखे मरे हैं परिंदे
दरख्त काट कर हम मुंडेरो पर परीडे रख आये
चुग्गा जा कबूतरों को डाला यही बचे हैं परिंदे
एक ज़माना था रंग बिरंगे पक्षी थे बहुत आलम
अब कुछ कम्पुटरों के वालपेपरो पर रहे हैं परिंदे