विविध…..

पढ़ोगे तो भी किसी नतीजे पर पहुँचोगे नहीं।

हम फटे पन्ने वक़्त की अबूझ किताब के हैं।।

अश्कों ने लिखा है रोता हुआ मुकद्दर हमारा।

ये ज़िन्दगी के दिन टुकड़े किसी ख़्वाब के हैं।।

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ये आहटें किसी और के घर की तरफ़ जा रही होंगी।

मुझे मालूम है मेरे दरवाज़े पर कोई नहीं आने वाला।।

इस शहर में दुश्मन नहीं मेरा तो कोई दोस्त भी नहीं।

ख़ुदग़र्ज़ ज़माने में कहाँ है कोई साथ निभाने वाला।।

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ख़्वाब और हक़ीक़त के बीच का फर्क इस बात से समझ।

आंखों ने मंज़िल देख ली पर सफ़र का फ़ासला बहुत था।।

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हर रँग सियाही में उतर गया क्या।

हम ज़िंदा हैं दिल मर गया क्या।।

सारी दुनिया से हो आज नाराज़।

कोई अपना चोट कर गया क्या।।

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नज़ारा तो है सामने….

नज़ारा तो है सामने लेकिन सूरत पसे नज़र क्या है

आईना भी कब दिखा पाया अक्स के अंदर क्या है

सतह के फैलाव पर न ठहर गहराई में उतर के देख

पानी का एक कतरा नहीं है तो फिर समंदर क्या है

अमृत की तलाश में कितनी ही बार पी लेने के बाद

आदमी ने ये खूब जान लिया आख़िर ज़हर क्या है

भरोसा ही तो है के अनदेखे को ख़ुदा कहते है लोग

बात अक़ीदे की है वरना बुतकदे का पत्थर क्या है

किस्मत में लिखी थी आवारगी तो समझते भी कैसे

ठौर ठिकाना किसे कहते है औऱ अपना घर क्या है

एक कदम बढ़ा था गलत राह में फिर उसके बाद

सारी ज़िन्दगी ये न जान पाए आखिर सफ़र क्या है

दुनियादारी का चलन तुम खुद कहाँ समझे आलम

फिर ख़ुदग़र्ज़ ज़माने से शिकायत इस क़दर क्या है

अर्थहीन सफर …

ख़ुदा की तलाश में सारी दुनिया है

क्या कोई ख़ुद को भी ढूँढ रहा है

यूँ  इस जहान में कोन किस का है

हाँ है, वो कि जिसका नाम ख़ुदा है

माना तूने अपनी ज़िद हासिल की

मगर किस कीमत पे मिली पता है

मुझको तो खुद पर भी यकीन नहीं

कैसे कहुँ के दुनिया पर भरोसा है

रिश्तों के सच को समझे तो जाना

इस जहान में हर शख्स अकेला है

उंगलियां ज़ख़्मी हुई, होनी ही थीं

काँटों ने दोस्ती का तोहफा दिया है

दिल का हाल मुखोटे क्या समझेगे

उदास चेहरा हालात का आईना है

बता तो सही तेरा चेहरा भी है कोई

खूबसूरत है माना जो तेरा मुखोटा है

सर झुकाने के सिवा कोई चारा ही नहीं

मसलेहतो का मजबूरियों पर पहरा है

रिश्तों का भरम भी खुल गया आलम

मुझ को बड़ा वहम था यह घर मेरा है

 

नोटबंदी:बेंकों के बाहर कतारों से

1

बेंकों के बाहर

अपने ही पेसे के लिए

पेदल साइकल स्कूटर वाले

भिखारी बने कतार में हैं

हैरानी यह है

कि कारें कहाँ गयीं ?

2

बेंकों के बाहर

लगी कतारों में

पसीने की बदबू

बढ़ी जा रही है

कोई बताएगा

डीयो-प्रफ्यूम की महक

यहाँ क्यों नहीं है

3

मंगल सेठ/जुम्मा भाई

कारों में

कारोबार पर गये

काला धन

कालू-घीसू के पास से निकला

देखो लिए खडे तो हैं

गुरबे बेंक की कतार में

4

बेंकों की कतार में

नहीं दिखा

कोई नेता-अभिनेता

सेठ-चाटूकार

ये सब ईमानदार

तो फिर

क्या हैं ?

कालू-जुम्मा सब भूखे नंगे

काले धन के ठेकेदार

5

बेंकों के बाहर कतारों में

ज़र्दा फटकारते

कांपते हाथ बहुत देखे

मोटी चमकती अंगुठिया

मिनीक्युर्ड उंगलियाँकहाँ गयीं ?

6

मासूम बच्चों के

बहुत गुल्लक टूटे

स्विस-खातों

पनामा-लीक्स

इंडियाटुडे-आडियो लीक्स

का क्या हुआ?

दोस्तों! मुहब्बत मर गयी है

 

मुहब्बत में

प्यार की चाशनी सने या

आंसुओं से भीगे

खतों का दोर गया.

छतों पर धूप सेकती

रात सी काली जुल्फें के

शर्मीले इशारे,

दूर ही दूर से

खिड़कियों पर रखे

पाकीज़ा आँखों के पैगाम

अब कहाँ?

लाइकिंग.

मीटिंग.

एन्जोयिंग.

लिवइन.

ब्रेकअप.

फॉरगेट.

नई तहज़ीब ने

धुंधली की सिंदूर रेखा.

जन्मों के मिलन का विश्वास

चंद दिनों का तजुर्बा बना.

बिस्तरों पर सिमट गयी मुहब्बत

जिस्मों के तकाज़े बचे रहे

मर गयी मुहब्बत.

मतलबी रिश्तों से भी….

मीठी बातों को रखना प्यारे ज़रा टाल कर

तल्खी पिलाते हैं लोग चाशनी में डाल कर

केचियाँ शब्द ढूढती फिर रही हैं, होश रहे

बोलना समझ कर और ज़बान संभाल कर

टूट गये शीशों को इसका बहुत मलाल है

हाथ फूल उठा लाते हैं, पत्थर उछाल कर

ये पत्थर काले-सफ़ेद का फ़र्क नही जानते

घर से जा तो रहे हो मगर देख-भाल कर

रिश्ता था तो सही किसी से अब नहीं रहा

वो के जिसे रखा था आस्तीन में पाल कर

किसे कहते थक गये हैं अब सहारा चाहिए

हमसफ़र जा चुके  रास्ता अपना निकाल कर

अपनी बर्बादी का सबब ख़ुद ही से ना पूछ

मतलबी रिश्तों से भी तो कभी सवाल कर

रिश्ते प्यारे थे मगर सब आभासी निकले

राज़ ये समझे “आलम”रोग कई पाल करDSCN0457.JPG

अंतिम सत्य

अस्तित्व और नश्वरता

जीवन के दो अबूझ किनारे हैं.

जिनके बीच में

समय की नदी बह रही है.

मिलन इनका तभी संभव है

जब कि सूखे

बाधा बनी काल धारा.

परन्तु जिस घड़ी

वक्त का दरिया सूखेगा

माटी के सिवा कुछ नहीं बचेगा.

माटी का कण-कण

उठ खडा होकर.

अस्तित्व और नश्वरता के

अबूझ तलिस्म का

शाश्वत सत्य देख रहा होगा.

डूबने वालों का मसीहा कोई है?

अंधों को चश्मे बांटने का दोर में

सूखे कुओं से पानी माँगने के सवाल

जवाब बन कर लोट रहे है.

प्रतिध्वनियों के पागल करते शोर में

चीत्कारों और कहकहों के बीच

कोई फर्क ही नहीं रहा.

विरक्त खारे समंदर का पानी

सरों के पार हुआ.

डूबते हुए अनगिनत हाथ

दूर जगमग साहिल की तरफ

अब भी आस से तक रहे हैं.

कोई है?

डूबने वालों का मसीहा कोई है.

नन्ही जड़ों का शोक-गीत

1

बरसात की रुत है

पोधारोपण कार्यकर्मों की धूम में

हमने पोधे रोपे.

नेताजी के साथ

फ़ोटो खिंचवा कर

मीडिया की तरफ दोड़ पड़े.

पानी देने कोई न रुका

पेड़ों को पानी पिलाने

कोई न लोटा.

हाँ, ज़रूर

बारिश की चंद गर्म बूँदें

गा रही थीं

नन्ही जड़ों का शोक-गीत.

2

बरसात की रुत है

पोधारोपण कार्यकर्मों की धूम में

बहुत पोधे लगाओ

नेता जी के साथ

फोटो भी खिंचवाओ

फ़ेसबुक पर खूब पोस्ट करो

अखबारों में भी दे आओ.

मगर यारो! कभी सोचा है?

मालिक की भेजी बरसात के सिवा

क्या कभी कोमल पोधों की

किसी ने सुध ली

क्या तुममें से किसी ने

एक लोटा भी इनको पानी दिया.

विकास के नाम पर

कितने पेड़ काटे गये

कितने दरख्तों का पुनःरोपण हुआ.

बड़े इस अपने शहर को

बेतरतीब बसाने के लिए हमने

कितने जंगलों का कत्लेआम किया.

कभी सोचना दोस्तों!

पोधे लगाना अच्छी बात है

उन्हें सीचना और भी अच्छी बात है

अनावश्यक कटते पेड़ बचाना

शायद सबसे अच्छी बात है.

 

‘कुछ लोग’ और ‘बहुत से लोग’

शराब के कारखानों में

बह रहा है पानी

खेत सूखे हैं.

शीतल पेय बन रहा है पानी

मटके सूखे हैं.

लानों को हरा कर रहा है पानी

ताल तलाई सूखे हैं.

बोतलों में

बंद हो रहा है पानी

कुँए नलके सूखे हैं.

कुछ ‘ख़ास लोग’

केवल बोतल बंद पानी ही पीते हैं.

‘बहुत से’ भूखे-प्यासे लोग

हरे मलमेटे कीच-भरे पानी को

तलाशते हुए

किसी केराना या मंदिर-मस्जिद के

चोराहे पर रोक लिए जाते हैं.

उसके बाद ये बहुत से भूखे-प्यासे लोग

एक दुसरे का खून पीने लगते हैं

और कुछ ‘ख़ास लोगों’ को

बोतल बंद पानी से नहाने के बाद

हरे-भरे लानों पर नाचते देख कर

सभी मीडिया वाले

कुर्सी संगीत बजाने लगते हैं.

कहते है कभी

चुल्लू भर पानी का मान था

इस दोर के लोगो को

निर्लज होने का अभिमान है.