घर से धर्म-जाति, नोट-दारु की पोट लेके निकलते है
नेता जानते हैं लोग उन्माद-नशे में बहकते-बहलते है
ये दोर है मुखोटो का,बहरुपियों का,नक्कालो-भाडॉ का
अब कहाँ वो दीवाने लोग जो सूलियों पर मचलते है
खेला था बचपन में कुर्सीयों की अदलाबदली का खेल
आज की ज़रूरतों के मुताबिक़ हम पार्टियां बदलते हैं
वक़्त बुरा हो तो अपना घर भी हो जाता है दुश्मन
हमने देखा है किस तरह आँसू आँखों से निकलते है
तुम समझदार हो अपने दिमाग को काम में लेते हो
हम दीवाने लोग भी अपने दिल के कहे पर चलते हैं
ये दोर है मुखोटो का,बहरुपियों का,नक्कालो-भांडों का
अब कहाँ हैं वो दीवाने लोग जो सूलियों पर मचलते है
खेला था बचपन में कुर्सीयों की अदलाबदली का खेल
आज की ज़रूरतों के मुताबिक़ हम पार्टियां बदलते हैं
इस तरह भी रोज़ होती है महलों से कहीं दूर दीवाली
भूमाफियों के हुक्मों पर मुफलिसों के झोपड़े जलते हैं