उर्दू शायरी के नभ पर एक जगमगाते सितारे का नाम है कृष्ण बिहारी नूर लखनवी।गंगा-जमनी तहज़ीब ने हमें उर्दू दी और उर्दू ने नूर साब जैसे शायरों को जन्म दिया। नूर साब ने बोलचाल की उर्दू के सहारे जिंदगी के सभी रंग दिखाए हैं अपनी शायरी में।उनके यहाँ मिलन है तो बिछोह भी, खुशी है तो गम भी।
आम आदमी के खोने-पाने की दास्तान उनकी गज़लों में नाज़ुक सच्चे लखनवी अंदाज़ के साथ पेश की गयी है। इसके साथ ही सूफियत में भारतीय अध्यात्म को समो कर नूर साहिब ने ऐसे शेर गढ़े जिन्होंने पढ़ने और सुनने वालो को सदा चकित और चमत्कृत किया है। उनकी शायरी में जान और जानाँ के बीच के अजर-अमर संबंध गहरे तलिस्मी अंदाज़ में एक दूसरे में समाये हुए मिलते हैं। उनके काव्य की गहराई में पहुँचने के लिए, जैसा कि जिगर साब ने फरमाया है “एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है” वाली स्थति में पहुंचना ज़रूरी है। ये उनका कमाल है कि पाठक या श्रोता उनके दुःख में अपने को शामिल समझता है। उस मनोस्थति में अक्सर मिट जाता है अंतर सुनने और सुनाने वाले के बीच। मुझे कई मुशायरों में नूर साब को सुनने का सोभाग्य प्राप्त हुआ है। उनका शेर पढ़ने का अंदाज़ निराला और अनूठा था। खुद तो ग़ज़ल में डूब ही जाते थे काव्य के जादू में श्रोताओं को भी अपने साथ बहा ले जाते थे।
नूर साब ने अधिक तो गज़लें ही लिखी हैं परन्तु शायरी की अन्य विधाओं जैसे नज़्म और कतात भी काफी लिखे हैं। नूर साब अब हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उनकी शायरी उर्दू प्रेमियों के लिए प्रसाद है। उनके रचना संसार से पेश हैं कुछ खूबसूरत ग़ज़लें
आग है, पानी है, मिटटी है, हवा है, मुझ में
और फिर मानना पड़ता है के खुदा है मुझ में
अब तो ले दे के वही शख्स बचा है मुझ में
मुझ को मुझ से जुदा करके जो छुपा है मुझ में
जितने मोसम हैं सब जेसे कहीं मिल जाएँ
इन दिनों केसे बताऊँ जो फिजा है मुझ में
आइना ये तो बताता है के मैं क्या हूँ लेकिन
आइना इस पे है खामोश के क्या है मुझ में
अब तो बस जान ही देने की है बारी नूर
मैं कहाँ तक करूँ साबित के वफ़ा है मुझ में
…..
इक ग़ज़ल उस पर लिखूं दिल का तकाजा है बहोत
इन दिनों खुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहोत
रात हो दिन हो गफ़लत हो के बेदारी हो
उसको देखा तो नहीं उसे सोचा है बहोत
तिश्नगी के भी मुकामात हैं क्या क्या यानि
कभी दरिया नहीं काफी कभी कतरा है बहोत
मेरे हाथ की लकीरों के इजाफे हैं गवाह
मैंने पत्थर की तरह खुद को तराशा है बहोत
कोई आया है ज़रूर और यहाँ ठहरा भी है
घर की दहलीज़ पे ऐ नूर उजाला है बहोत
……
जिंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
सच घटे या बढे तो सच ना रहे
झूठ की कोई इन्तेहा ही नहीं
जिन्दगी मोत तेरी मंजिल है
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं
जिसके कारन फसाद होते है
उसका कोई अता-पता ही नहीं
केसे अवतार केसे पैगम्बर
एसा लगता है अब खुदा ही नहीं
जिंदगी बता अब कहाँ जाएं
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
चाहे सोने में के फ्रेम में जड़ दो
आईना झूठ बोलता ही नहीं
अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है
नूर संसार से गया ही नहीं
…..
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद
मैं केसे किसी और सिम्त मोड़ता खुद को
किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद
ज़मीर कांप तो जाता है आप कुछ भी कहें
वो हो गुनाह से पहले के हो गुनाह के बाद
कटी हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की
छुपाता सर मैं कहाँ तुझ से रस्म-ओ-राह के बाद
हवस ने तोड़ दी बरसों की साधना मेरी
गुनाह क्या है ये जाना मगर गुनाह के बाद
गवाह चाह रहे थे वो बेगुनाही का
ज़बां से कह न सके कुछ खुदा-गवाह के बाद
खतूत कर दिए वापस मगर मेरी नीदें ?
इन्हें भी छोड़ दो इक रहम की निगाह के बाद
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तेज़ हो जाता है खशबू का सफर शाम के बाद
फूल शहरों में भी खिलते हैं मगर शाम के बाद
उस से दरयाफ्त न करना कभी दिन के हालात
सुबह का भूला जो लोट आया हो घर शाम के बाद
दिन तेरे हिज्र में कट जाता है जेसे तेसे
मुझ से रहती है खफा मेरी नज़र शाम के बाद
कद से बढ़ जाए जो साया तो बुरा लगता है
अपना सूरज वो उठा लेता है हर शाम के बाद
तुम न कर पाओगे अंदाजा तबाही का मेरी
तुम ने देखा ही नहीं कोई शज़र शाम के बाद
मेरे बारे में कोई कुछ भी कहे सब मंज़ूर
मुझ को रहती ही नहीं अपनी ख़बर शाम के बाद
यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी
मुझ को लगता है बहोत अपने से डर शाम के बाद
तीरगी हो तो वजूद उसका चमकता है बहोत
ढूढ़ तो लूंगा उसे नूर मगर शाम के बाद
……
लाख गम सीने से लिपटे रहे नागन की तरह
प्यार सच्चा था महकता रहा चन्दन की तरह
तुझको पहचान लिया है तुझे पा भी लूँगा
एक जनम और मिले गर इसी जीवन की तरह
अब कोई केसे पहुँच पायगा तेरे गम तक
मुस्कराहट की रिदा डाल दी चिलमन की तरह
कोई तहरीर नहीं है जिसे पढ ले कोई
जिंदगी हो गयी बेनाम सी उलझन की तरह
जेसे धरती की किसी शय से ताअल्लुक ही नहीं
हो गया प्यार तेरा भी तेरे दामन की तरह
शाम जब रात की महफिल में कदम रखती है
भरती है मांग में सिन्दूर सुहागन की तरह
मुस्कराते हो मगर सोच लो इतना ऐ नूर
सूद लेती है मसर्रत भी महाजन की तरह
…….
बस एक वक़्त का खंजर मेरी तलाश में है
जो रोज़ भेस बदल कर मेरी तलाश में है
ये और बात के पहचानता नहीं है मुझे
सुना है एक सितमगर मेरी तलाश में है
अधूरे ख्वाबों से उकता के जिसको छोड़ दिया
शिकन नसीब वो बिस्तर मेरी तलाश में है
ये मेरे घर की उदासी है और कुछ भी नहीं
दिया जलाए जो दर पर मेरी तलाश में है
अज़ीज़ हूँ मैं तुझे किस कदर के हर एक गम
तेरी निगाह बचा कर मेरी तलाश में है
मैं एक कतरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है
वो एक साया है अपना हो या पराया हो
जन्म जनम से बराबर मेरी तलाश में है
मैं देवता की तरह केद अपने मंदिर में
वो मेरे जिस्म से बाहर मेरी तलाश में है
मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
वो जिस खुलूस की शिद्दत ने मार डाला नूर
वही खुलूस मुकर्रर मेरी तलाश में है
…………
तमाम जिस्म ही घायल था घाव ऐसा था
कोई न जान सका रख रखाव ऐसा था
बस मांग में सिन्दूर भर के छोड़ आये
अपना अगले जन्म का चुनाव ऐसा था
ग़ज़लों के कुछ अशआर
1
लब क्या बताएँ कितनी अज़ीम उसकी ज़ात है
सागर को सीपियों से उलटने की बात है
2
मुद्दत से एक रात भी अपनी नहीं हुई
हर शाम कोई आया उठा ले गया मुझे
3
ये जिस्म सबकी आँखों का मरकज़ बना हुआ
बारिश में जैसे ताजमहल भीगता हुआ
4
शख़्स मामूली वो लगता था मगर ऐसा न था
सारी दुनिया जेब में थी हाथ में पैसा न था
5
हज़ार ग़म सही दिल में मगर ख़ुशी यह है
हमारे होंठों पे माँगी हुई हँसी तो नहीं
6
मैं तो अपने कमरे में तेरे ध्यान में गुम था
घर के लोग कहते हैं सारा घर महकता था
7
बेनियाज़ी उसकी कितनी जानलेवा है न पूँछ
अब उस के हाथ में न फूल है न पत्थर है
8
ये किस मुक़ाम पे ले आई जुस्तजू तेरी
कोई चिराग़ नहीं और रोशनी है बहुत
9
अब तो पर्दा ऐ देर ओ हरम उठा दे या रब
हो चुका जो तमाशा वो तमाशा है बहुत
10
गुज़रे जिधर जिधर से वो पलटे हुए नक़ाब
इक नूर की लकीर सी खिंचती चली गई
11
मैं तो गज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
`12
उससे दरयाफ्त न करना कभी दिन के हालत
सुबह का भूला जो लौट आया हो घर शाम के बाद
(आलेख का काफी हिस्सा दिसम्बर २०१० में स्वार्थ ब्लॉगhttp://swaarth.wordpress.com/ पर मेरे द्वारा प्रकाशित है)