नज़ारा तो है सामने….

नज़ारा तो है सामने लेकिन सूरत पसे नज़र क्या है

आईना भी कब दिखा पाया अक्स के अंदर क्या है

सतह के फैलाव पर न ठहर गहराई में उतर के देख

पानी का एक कतरा नहीं है तो फिर समंदर क्या है

अमृत की तलाश में कितनी ही बार पी लेने के बाद

आदमी ने ये खूब जान लिया आख़िर ज़हर क्या है

भरोसा ही तो है के अनदेखे को ख़ुदा कहते है लोग

बात अक़ीदे की है वरना बुतकदे का पत्थर क्या है

किस्मत में लिखी थी आवारगी तो समझते भी कैसे

ठौर ठिकाना किसे कहते है औऱ अपना घर क्या है

एक कदम बढ़ा था गलत राह में फिर उसके बाद

सारी ज़िन्दगी ये न जान पाए आखिर सफ़र क्या है

दुनियादारी का चलन तुम खुद कहाँ समझे आलम

फिर ख़ुदग़र्ज़ ज़माने से शिकायत इस क़दर क्या है

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