मीठी बातों को रखना प्यारे ज़रा टाल कर
तल्खी पिलाते हैं लोग चाशनी में डाल कर
केचियाँ शब्द ढूढती फिर रही हैं, होश रहे
बोलना समझ कर और ज़बान संभाल कर
टूट गये शीशों को इसका बहुत मलाल है
हाथ फूल उठा लाते हैं, पत्थर उछाल कर
ये पत्थर काले-सफ़ेद का फ़र्क नही जानते
घर से जा तो रहे हो मगर देख-भाल कर
रिश्ता था तो सही किसी से अब नहीं रहा
वो के जिसे रखा था आस्तीन में पाल कर
किसे कहते थक गये हैं अब सहारा चाहिए
हमसफ़र जा चुके रास्ता अपना निकाल कर
अपनी बर्बादी का सबब ख़ुद ही से ना पूछ
मतलबी रिश्तों से भी तो कभी सवाल कर
रिश्ते प्यारे थे मगर सब आभासी निकले
राज़ ये समझे “आलम”रोग कई पाल कर