यही कोई चालीस बरस पुरानी बात है, गावं के कुए पर देखता था, सब रस्सी बाल्टी से पानी खींचते, वहीं स्नान करते फिर कांधे पर पीने मटका और घरेलु उपयोग हेतु एक हाथ में पानी भरी बाल्टी लिए लोट आते थे.तब गावं के कच्चे रास्तों पर कहीं पानी बिखरा दिखाई नहीं देता था.
फिर पक्की पानी की टंकियां बननी शुरू हुई.घर-घर नलकों की लाइने बिछ गयी और एक बाल्टी पानी से संतुस्ट होने वाला आदमी दस बाल्टियां बहा कर भी कम पानी मिलने की शिकायत करने लगा.जबकि पानी तो व्यर्थ ही गलियों में बहने लगा था.
गावं के शहरीकरण की होड़ में खेत बिकने लगे,घने हरे पेड़ कटने लगे. यहाँ तक कि गवाई तालाब तक जाने वाले नाले पाट कर, वहाँ भी लोह-कंक्रीट के जंगल आबाद कर दिए गये.तालाब की नसें कटी तो सूख गया, मर गया बेचारा तालाब.नतीजे में वह भूजल जिससे कुवों का जलस्तर बना रहता था वे सब निर्जल हो गये.
तथाकथित विकास अपने साथ विलासिता के नए रोग लेकर आया और कमरे-कमरे कूलर लग गये.जिनमें कीमती पानी का सबसे अधिक दुरूपयोग हुआ.कोल्ड-ड्रिंक,शराब के कारखाने जेसे जल का दुरूपयोग करने वाले उधोग भी स्थपित हुए जो आवश्यता नहीं विलासिता के प्रतीक हैं.
कट गये पेड़,मिट गये खेत.पहाड़ियां जो मानसून को क्षेत्र में रोकती थी, अवेध खनन की भेट चढ़ गयी.ऊपर से तरह तरह के जान लेवा प्रदूषण ने भी बादलों को विचलित किया.बरसात कम होने लगी और होती भी तो तालाबों बांधों तक जल पहुंचाने के रास्ते कट गये थे.पानी व्यर्थ बह जाता था. नतीजे में धीरे धीरे छोटे-बड़े लगभग़ सभी तालाब-बांध सूख गये.
अब हाल यह है की कई कई दिन शहरों में पानी नहीं मिल रहा.कहीं पानी रेलें चल रही हैं.कहीं टेंकर प्यास बुझा रहे हैं तो कहीं दूर दराज से पाइप बिछा कर पानी लाया जा रहा है.सोचने की बात है, क्या यह जल समस्या का स्थाई समाधान है.बिलकुल नहीं,यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सबको प्यासा मरना पडेगा.
स्वार्थी मानव केवल अपने आज के लिए जी रहा है.व्यक्ति हों, संस्थाए हों कि सरकार सब हर साल अच्छे मानसून की दुआ करते है.फिर सूखा पड़ने पर तरह-तरह की योजनाये बनाई जाती हैं, जिन पर कभी भी गंभीर अमल नहीं होता.यूँ ही समय हाथ से निकला जा रहा है और सुरसा के मूँह की तरह शहर बड़े होते जा रहे हैं.गावं सिकुड़ते जा रहे है.पानी की ज़रूरत बढती जारी है आपूर्ति की कोई ठोस योजना नहीं है.
अब भी वक़्त है लोगो! लोट आओ परंपरागत जीवन तरीकों की ओर जिनमें अन्य सामाजिक समस्याओं के निराकरण के अतिरिक्त जल संचय और उसका सुचारू उपयोग के तरीके भी आजमाए हुए और सिद्ध है.विकास के तेज़ रफ़्तार हवाई जहाज़ में उड़ना अच्छी बात है पर पाँव धरती पर रखे जाए तो अब भी आने वाली पीडीयों के लिए हम अच्छा देश छोड़ जा सकते हैं.