एक आलेख के जवाब में
अभिव्यक्ति की आज़ादी अच्छी बात है
जो कि
ज़बान कहे, कलम लिखे, तूलिका अलख जगाये
भ्रष्ट राजतंत्र के खिलाफ
सामाजिक कुरुतियों के विरुद्ध
भूखे, प्यासे, दलित और कुचलों के हक में
हिमायत के लिए.
मेरे आदरणीय दोस्त
हम उस संस्कर्ति के पाले हैं जिसमें
बाप-माँ का आदर होता है
कोई तुम्हारे परिजनों को गाली दे
या वेश्या कहे आपकी पत्नी को
बताओ केसा लगेगा
कहो बायाँ गाल आगे करोगे.
परन्तु हम ठहरे
गोरी सभ्यता के पुश्तेनी नक्काल
जिसमे नग्नता फेशन है
बेहयाई प्रेम की भाषा
शराब के प्यालों पर
सम्भोगजनित संतानों को
बहुधा पता ही नहीं होता
बाप कोन है?
ऐसे संस्कारों की पोषक सोच हेतु
केसा सम्मान
देवी-देवता-अवतारों-पैगम्बरों के लिए.
नेतिक मूल्यों के विक्रेता जानते हैं
बिकने के लिए प्रचार ज़रूरी है
प्रचार की कुंजी है विवाद
पूज्यनीयों के अश्लील चित्रण द्वारा
पल में
प्रगतिशीलता के नाम पर
कूडादान गुलदस्ते बन जाते हैं.
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर जान कुर्बान
परन्तु विकृत और अश्लील ज़हनियत का
कलम–कूची–छेनी के सहारे
संवेदनाओं के साथ बलात्कार
असहनीय है.
मेरी आँखों में पूरब का सूरज उगता है
पश्चिम का काला चश्मा उतार कर
आप भी उजले सच को देखो.
रफत आलम